…अपनी केवल धार

Vishwajit Singh

मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर
तेरा तुझको सौंपता क्या लागै है मोर “
कबीर का उक्त दोहा अत्यन्त प्रासंगिक है। हमारे शख़्सियत के मूल (essence) एवं निर्माण (building) में हमारा योगदान नहीं। माता पिता का सम्बन्ध जन्म से, किन्तु नाम ( identity) का सम्बन्ध एकदम समाज से जुड़ जाता है। यह नाम कहाँ से आया, किसने दिया, कहाँ प्रचलित है…? यह समाज की ही देन है। जो भाषा हम बोलते हैं, वह भी हमारी नहीं, हमें किसी ने दी है। इसे मातृ भाषा कहते हैं, क्योंकि पहले माँ ही भाषा सिखाती है। परंतु माँ अकेले नहीं है, समाज भी है। हमारा आर्थिक, राजनीतिक, नैतिक विकास सबकुछ समाज के साथ जुड़ा है। हिमालय की गुफा में योगाभ्यास करके मुक्ति नहीं मिल सकती, योगाभ्यास भले ही हो जाये। मुक्ति भी व्यक्तिगत नहीं, सामाजिक है, समष्टिगत है।
मार्क्स, कॉडवेल, गांधी जैसे चिंतक भी मानते हैं कि हमारा व्यक्तित्व समाज का बाई प्रोडक्ट है। सबकुछ समाज की देन है, वह चाहे हमारा व्यक्तित्व हो या उपलब्धि।मैनेजमेंट पढ़ते हुए मुझे समझने को मिला कि हमारे व्यक्तित्व का निर्माण जेनेटिक्स एवं एंवायरनमेंट से मिलकर बनता है। हमारा रूप,रंग, लंबाई, बुद्धि आदि जेनेटिकल होता है जिसमें हमारा कोई रोल नहीं।वैसे ही हमारे फैमिली बैकग्राउंड, रहन-सहन, खान-पान पैरेंट्स की शिक्षा,संस्कार, इंकम आदि एंवायरनमेंटल है जो हमारे बेहतर या खराब भविष्य का निर्धारण करती है जिसमें हमारा कोई रोल नहीं।
किन्तु व्यक्तिवादी चिंतक मानने को तैयार नहीं, जैसे कि बर्ट्रेंड रसेल, पॉलिटिकल फिलॉसॉफी में रसेल- कॉडवेल डिबेट है, जिसमें कॉडवेल ने साबित किया और रसेल से कहा कि अगर तुम किसी कारपेंटर के बेटे होते तो आज हम एक महान गणितज्ञ रसेल को नहीं अपितु एक महान कारपेंटर को जानते क्योंकि तुम्हारा गणितज्ञ होना तुम्हारी परिस्थितियों से पैदा हुआ है न कि तुम्हारे व्यक्तित्व से।
कुछ वर्ष पूर्व मैंने चेतन भगत के नॉवेल “हॉफ गर्लफ्रेंड ” में पढ़ा था जिसमें नायक माधव दुनिया के रीचेस्ट पर्सन बिल गेट्स को कहता है कि:
Mr. Gates what you have achieved is not because of luck. It’s because of your creativity, vision and hard work. You deserve it. But one place where luck helped you is America, to be born in a country where everyone gets a chance.
एलन मस्क, मार्क जुकरबर्ग नामीबिया या रुआंडा जैसे मुल्कों में रहकर क्या आज जो है वो हो सकते थे…??
इंद्रानूयी भारत में रही होती तो सायद किसी मिडल परिवार की सामान्य बहू बन कर रह गई होती। यह अमेरिका है जिसने इनके टैलेंट को तरासा, प्रोत्साहित किया, पुष्पित पल्लवित होने का उचित स्ट्रॅक्चर, माहौल एवं अवसर प्रदान किया।
जिसे अरुण कमल ने अपनी कविता में खूबसूरती से व्यक्त किया है:
अपना क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार “
Vishwajit Singh

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