2.बुद्ध से कबीर तक ट्रस्ट, गौतम बुद्ध के बताए "मध्यम मार्ग" को सामाजिक समरसता का सबसे सशक्त माध्यम मानता है एवं यह विश्वास करता है कि "मध्यम मार्ग" का अनुसरण कर समाज मे व्याप्त विद्वेष का प्रभावशाली तरीके से निराकरण संभव है।
बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग का सार ही मध्यम मार्ग कहलाता है।जिसमें निम्न बिंदु आते हैं-
सम्यक दृष्टि यानी.. जीवन के समस्त बिंदुओं का सही अवलोकन।
सम्यक संकल्प यानी... सही मार्ग पर चलने की दृढ़निश्चयता।
सम्यक कर्मान्त यानी....सही आचरण।
सम्यक वाक् यानी...वाणी की पवित्रता और सत्यता।
सम्यक आजीव यानी न्यायपूर्वक एवं आवश्यक्ताभर जीविकोपार्जन।
सम्यक स्मृति यानी.... चित्त एवम विचारों की एकाग्रता और शुद्धता।
सम्यक व्यायाम यानी..... ऐसा व्यवहार जो शुभकारक हो और अशुभ का निरोध करे।
और,सम्यक समाधि अर्थात... उपरोक्त सातों मार्गों के समुचित अभ्यास के बाद कि निर्विकल्प ज्ञान की अनुभूति।
जैसा कि विदित है, अति सर्वत्र वर्जयेत.....तो यही मध्यम मार्ग है जो मानवमात्र को अतिवाद या जीवन के किसी भी व्यवहार के अति से रोककर रखती है। सुखी व शांत जीवन के लिए मध्यम मार्ग सबसे सरल और हितकारी व्यवहार है।
अतः बुद्ध से कबीर तक परिवार के सभी सदस्यों के लिए ट्रस्ट के उद्देश्यों के व्यापक प्रतिपादन के लिए यह आवश्यक है कि वे बुद्ध के बताए मध्यम मार्ग का आचरण करें।
3.बुद्ध से कबीर तक ट्रस्ट, महान संत कबीर दास जी द्वारा सीधे, सरल, स्पष्ट और निर्भीक रूप से सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक कट्टरवाद का विरोध करने के तरीके को अपना आदर्श मानता है. यह ट्रस्ट उस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए निर्भीकता के साथ, स्पष्ट रूप से समाज में व्याप्त कुरीतियों का विरोध करता रहेगा. ट्रस्टका हर सदस्य लिंग, धर्म, जाति और भाषा से ऊपर उठकर इसके लिए सदैव तैयार रहेगा.
Explanation.
संत कबीर का समयकाल तमाम विषमताओं से व्याप्त एक असंतुलित समाज का था, उस समय देश आर्थिक विषमताओं और और साथ साथ अनेक धार्मिक,शासकीय आडंबरों में जकड़ा हुआ था, जात-पात, ऊंच नीच, अमीर गरीब, अंधविश्वास, पाखंड ये सारे तत्व समाज को खोखला करने की कोशिश में जमकर लगे हुए थे, ऐसे में संत कबीरदास का क्रांतिकारी पदार्पण बेहद महत्वपूर्ण और प्रभावी हुआ। उन्होंने अपने सरल, सुलभ विचारों के माध्यम से समाज में फैली इन बुराइयों को जिस तरह से उजागर किया, और जिस तरह से लोगों ने उसे समझा वह भारतीय बौद्धिक ,वैचारिक उत्थान में एक बृहद अध्याय है।
कमोबेश और दुर्भाग्यवश आज का समाज भी उन्हीं विषमताओं में जकड़ रहा है, जिनमें कबीर के समय जकड़ा हुआ था। राजनैतिक प्रदूषण और कट्टरपंथियों के उपद्रवी तेवर के कारण भारत की अखंडता और संप्रभुता क्षीण होती जा रही है, ऐसे में पुनः आवश्यकता है, समाज में कबीर के उन्हीं सुधारवादी विचारों का क्रियान्वयन फिर से किया जाय।
बुद्ध से कबीर तक ट्रस्ट इसी आधार और विचारधारा पर आगे बढ़ रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्यसमाज में जात-पात, ऊंच-नीच, धार्मिक चरमपंथ और अनावश्यक धार्मिक कर्मकांड तथा पाखंड के बारे में लोगों को जागरूक कर, इन कुरीतियों से दूर करना है।
आज समाज को फिर कबीर के उसी सशक्त, क्रांतिकारी आवाज की जरूरत है, जिसका माध्यम बुद्ध से कबीर तक ट्रस्ट बनेगा।
4. बुद्ध से कबीर तक ट्रस्ट महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा और सद्भाव के दर्शन को अपने आधिकारिक कार्यप्रणाली के तौर पर स्वीकार करता है तथा गांधीवादी दृष्टिकोण को एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था के लिए जीवनशैली का नैतिक आधार मानता है.
महात्मा गांधी का सम्पूर्ण जीवन धैर्य, सत्य, अहिंसा, आत्मनियंत्रण और प्रेम का प्रतिमान था, उनकी पूरी जीवन-यात्रा प्रयोगों और लगातार सीखते रहने की प्रक्रिया पर आधारित थी। अपने प्रयोगों और उच्च विचारों से उन्होंने वह आत्मबल प्राप्त किया था जिसने बरसों से चली आ रही एक हुकूमत की नींव को झकझोर कर रख दिया और यह शक्ति बिना किसी हथियार, बाहुबल और हिंसा के बगैर प्रतिफलित होकर देश की आजादी के रूप में सामने आई।
किसी भी आंदोलन के लिए उस तरह के आत्मविश्वास और आत्मबल का होना बेहद ही आवश्यक है जो उस लाठी लेकर चलने वाले ठिगने कद के अधनंगे वीर में कूट कूट कर भरी हुई थी।
बुद्ध से कबीर तक यात्रा रूपी हमारा आंदोलन, सामाजिक बुराइयों और विषमताओं को लेकर उनसे लड़ाई का है, तमाम तरह की विसंगतियां आज हमारे समाज को जकड़े हुए हैं। ऐसे में बुद्ध और कबीर के विचारों को आत्मसात करते हुए गांधीजी के दर्शन का अनुकरण इस सामाजिक आंदोलन को एक नई और सशक्त दिशा प्रदान करेगा।
गांधी का रास्ता अहिंसा का था, उनका जीवन सादा था, उनके विचार उच्च थे, तभी आज पूरा विश्व उनके नाम को भलीभाँति पहचानता है, और उनके युद्ध को विचारों के एक आदर्श युद्ध का मापदंड मानकर चलता है।
समाज में व्याप्त बुराइयों, ऊंचनीच, भेदभाव, जातिगत वैमनस्य और धार्मिक उन्माद को समाप्त करने में भारत ने समय समय पर बुद्ध, कबीर और गांधी जैसे महान विभूतियों को जन्म दिया है, इसलिए हमारा यह कर्तव्य और उत्तरदायित्व बनता है कि ऐसे किसी भी आंदोलन की यात्रा में हमें इन महापुरुषों के विचारों को अपना सहयात्री बना कर चलना है, तभी हमारी विजय सुनिश्चित होगी।
अतः, यह बुद्ध से कबीर तक ट्रस्ट अपने सिद्धांतों की अगली कड़ी में महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा और सद्भाव के दर्शन को अपने आधिकारिक कार्यप्रणाली के तौर पर स्थापित करने का संकल्प करता है।
5.बुद्ध से कबीर तक ट्रस्ट महिलाओं का विशेष सम्मान करता है एवं समाज के पुनरुत्थान में महिलाओं की भूमिका को अतिमहत्वपूर्ण मानते हुये महिलाओं से विनम्र आह्वान करता है कि वो आगे आये और समाज निर्माण की प्रक्रिया में अपना अमूल्य योगदान दे।
विद्वानों का मानना है कि प्राचीन भारत में महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के समान बराबरी का दर्जा हासिल था। बाद में लगभग 500 ईसा पूर्व में महिलाओं की स्थिति में गिरावट आनी शुरू हुई और आगे चलकर महिलाओं की आजादी और अधिकारों को और भी सीमित कर दिया। हालांकि समय-समय पर महिलाओं के उत्थान के लिए कई आंदोलन, कई समाज सुधारक आगे आए, उन सबने समय-समय पर महिलाओं की दयनीय स्थिति का विरोध और समाज में उनकी गरिमा की पुनर्स्थापना के लिए खूब काम किया।
वर्तमान भारत में महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार आया है वे पुरुषों के बराबर ही समानता का अधिकार रख रही है उनके साथ हर क्षेत्र में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं और उनकी भागीदारी देश के विकास के हर दृष्टिकोण में अति आवश्यक हो चुकी है परंतु आज भी हमारे देश में कुछ स्थानों पर, समाज के कुछ हिस्से में महिलाएं दयनीय स्थिति में हैं, वे अब भी पुराने दकियानूसी विचारों के तले दबी और प्रताड़ित हो रही हैं, जिसे बदलना जरूरी है।
स्वयं बुद्ध ने वैशाली में आम्रपाली को धम्म मार्ग में प्रवेश दिलाया था.... उन्होंने कहा था कि मेरे लिए समाज के किसी व्यक्ति में कोई विभेद नहीं है, तथागत समदृष्टी हैं। आम्रपाली ने बुद्ध के प्रति अनुपम श्रद्धा दिखाई और स्वयं को भिक्खु संघ के लिए समर्पित कर दिया और भिक्षुणी हो गई। वह पहली ऐसी महिला थी जिसने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी। सारे नियमों के विरुद्ध बुद्ध ने उसके सन्यास और समर्पण का सम्मान किया।
इसी क्रम में कबीरदास जी भी कहते हैं कि-
"नारी नरक ना जानिए है सब संतन की खान
जामें हरिजन उपजे सोई रतन की खान।।"
भारत का संविधान सभी भारतीय महिलाओं को समान अधिकार, राज्य द्वारा कोई भेद-भाव नहीं करने, समान कार्य के लिए समान वेतन और अवसर की समानता की गारंटी देता है और इसके अलावा यह महिलाओं के पक्ष में राज्य द्वारा विशेष प्रावधान बनाए जाने की अनुमति भी देता है। महिलाओं की गरिमा के लिए एवं उनकी सहायता के लिए राज्य द्वारा प्रावधानों को तैयार करने की अनुमति संविधान में निहित है।
इस आधार पर,बुद्ध से कबीर तक ट्रस्ट अपने इस सामाजिक आंदोलन में महिलाओं की भूमिका को सर्वोपरि और सर्वमान्य मान कर उन्हें समाज में पुनरुत्थान और समरसता का मुख्य अंग एवं मुख्य कारक मानता है। ट्रस्ट महिलाओं का विशेष सम्मान करता है एवं समाज के पुनरुत्थान में महिलाओं की भूमिका को अति महत्वपूर्ण मानते हुए महिलाओं से विनम्र आग्रह करता है कि वे आगे आएं और समाज के निर्माण प्रक्रिया में अपना बहुमूल्य योगदान दें।